भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नाम का इस बार चौमासा रहा / पुरुषोत्तम प्रतीक
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:39, 29 मई 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पुरुषोत्तम प्रतीक |संग्रह=पेड़ नह...' के साथ नया पन्ना बनाया)
नाम का इस बार चौमासा रहा
बादलों का गाँव ख़ुद प्यासा रहा
फिर वही क़बरें, फिर वहीऒ सुर्ख़ियाँ
आज का अख़बार भी बासा रहा
सब कलाओं की वही तो जान है
जो हमारी जान का रासा रहा
शेर बनकर शब्द मिमियाने लगे
ब्रह्म के इस काम का हाँसा रहा
आपने पानी बहुत पहना मगर
रेत का हर अंग दुरवासा रहा