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जगह-जगह तेरी बातें थीं / शमशेर बहादुर सिंह
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जगह-जगह तेरी बातें थी, तेरे चर्चे थे;
ज़माना क्या वो हमको नहीं याद, क्या कुछ था ?
जो 'कारवाँ' से उठी थी सदाए-बाँगे-जरस;
उसी पे चलता अगर बादाबाद...क्या कुछ था ! !
लिखी थी नज़्म तो अंग्रेज़ी में--मगर क्या ख़ूब !
जो और बढ़ता यह हिन्दी नज़ाद, क्या कुछ था ! !
तबाह कर दिया तुझको शराबख़ोरी ने
वर्गना, तू भुवनेश्वर प्रसाद, क्या कुछ था !
सदाए-बाँगे-जरस=घंटियों की आवाज़ की धुन; नज़ाद=वंश
यह क़िता अप्रतिम एकांकी-नातककार भुवनेश्वर की याद को समर्पित है ।
'कारवाँ' भुवनेश्वर के एकांकी-संग्रह का शीर्षक है ।