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बरसों दूर निकल आए हैं / पुरुषोत्तम प्रतीक

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बरसों दूर निकल आए हैं
दर्द अभी तक हमसाए हैं

मेरे जैसे हैं बादल भी
पानी आँखों में लाए हैं

क्यूँ होते हो पानी-पानी
हम तो यूँ ही मुस्काए हैं

मौसम था बादल छाने का
देखो ख़तरे मँडराए हैं

प्यासी आँखों की नावों में
कितने सागर लहराए हैं

नंगे पेड़ खड़े हैं दिल में
पेड़ों पर पत्ते छाए हैं

उसने फिर चूल्हा सुलगाकर
भूखे बच्चे बहलाए हैं