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शब्द (2) / राजेन्द्र सारथी

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हर शब्द है एक भवन
जो अक्षर तत्वों की चिनाई से बनता है
जिसमें अनहद नाद का अंश आकर बसता है।

हर शब्द की अलग है गंध
सत्ता/महत्ता
शब्द भी होते हैं तामसी/सात्विक
उग्र और विनम्र
उनमें भी होती हैं श्रेणियां/जातियां
करते हैं वे मित्रता भी
निभाते हैं शत्रुता भी
अपने वर्ग अथवा सजातीय के साथ
शब्दों में भी रहती है अंतरंगता
वाचालता
यदि गुण मिल जाएं
तो विधर्मी शब्द को भी कर लेते हैं आत्मसात
वर्ना वाक्य में साफ दिखलाते हैं पदाघात।

बंधु,
शब्दों को हम मानवीय दृष्टि से देखें
तो शब्दकोश लगेगा हमें एक देश के मानिंद
शब्द उसमें रहने वाले नागरिक
जो संचालित होते हैं व्याकर्णिक संविधान से
हम सीख सकते हैं
शब्दों से सभ्य नागरिक बनकर रहना
शब्दकोश में शब्द कभी उपद्रव नहीं करते।