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सवन्त्रता-संग्राम का सेनानी / नंद चतुर्वेदी

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वह स्वतन्त्रता-संग्राम का पुराना सेनानी था
उसने कबाड़ से अपने तेजस्वी दिनों की
तस्वीरें निकालीं
रपटें जो उन दिनों छपी थीं
वह फाइल

घबराकर उसने उस मकड़ी को देखा
नहीं, उसके गिरतार होने के सर्टीफिकेट
असुरक्षित नहीं थे
वे उस मटमैली टोपी में तह किये रखे थे
जहाँ से वह आठ टांगवाली
अक्रामक मकड़ी
भागी थी निकलकर

नहीं, पहले कुछ नहीं
अब काँपने लगी हैं अँगुलियाँ
बार-बार नाक के ऊपर
करते हुए चश्मा
नहीं, पहले कुछ नहीं
अब कितना मुश्किल है
साफ-साफ छपे
बड़े-बड़े अक्षरों में दमकते
उन शब्दों का पढ़ना
स्वतंत्रता वगैरा

कचहरी के मुंशी ने
इधर-उधर से फाइल देखी
स्वतंत्रता-संग्राम के सेनानी का
चेहरा-मोहरा
पूछा अब क्या सोचते हो
उसने चौंकते हुए लगभग चिल्लाते हुए कहा
साहब ! अब आपका राज आ गया है।