Last modified on 1 जून 2012, at 11:42

बहस में अपराजेय / राजेन्द्र राजन

Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:42, 1 जून 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेन्द्र राजन }} <poem> वे कभी बहस नही...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

वे कभी बहस नहीं करते
या फिर हर वक्त बहस करते हैं

वे हमेशा एक ही बात पर बहस करते हैं
या फिर बहुत-सी चीज़ों पर बहस करते हैं एक ही समय

वे बहस को कभी निष्कर्ष तक नहीं ले जाते
वे निष्कर्ष लेकर आते हैं और बहस करते हैं

जब वे बहस करते हैं तो सुनते नहीं कुछ भी
कोई हरा नहीं सकता उन्हें बहस में