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प्रेम के बार में / नंद चतुर्वेदी

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हवा से मैंने प्रेम के बारे में पूछा
वह उदास वृक्षों के पास चली गयी
सूरज से पूछा
वह निश्चिंत चट्टानों पर सोया रहा
चन्द्रमा से मैंने पूछा प्रेम के बारे में
वह इंतजार करता रहा
लहरों और लौटती हुई पूर्णिमा का

पृथ्वी ही बची थी
प्रेम के बारे में बताने के लिए
जहाँ मृत्यु थी और जिन्दगी
सन्नाटा था और संगीत
लड़कियाँ थीं और लड़के
हजारों बार वे मिले थे और कभी नहीं

समुद्र था और तैरते हुए जहाज
एकान्त था और सभाएँ
प्रेम के दिन थे अनन्त
और एक दिन था

यहाँ एक शहर था सुनसान
और प्रतिक्षा थी
यहाँ जो रह रहे थे कहीं चले गये थे
थके और बोझा ढोते
जो थक गये थे लौट आये थे

यहाँ राख थी और लाल कनेर
प्रेम था और हाहाकार।