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तुम्हारी उमंग देखने तक / नंद चतुर्वेदी

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तुम्हारी उमंग देखने तक
मैं यहाँ बैठा हूँ
बादल पहाड़ियों से उतरकर यहाँ तक आ गये हैं
हमारे घर आँगन तक

अब तुम छप-छप करते
एक चिड़िया की तरह उड़ते
हँसते फिसलते नहाओगे रिमझिम में
एक-दूसरे को पकड़ते, भिगोते, धक्का देते

यही दिन हैं फिसल-फिसल कर खड़े होने के

मैं जल्दी से लौट जाना चाहता हूँ
सुरक्षित बिना भीगे
तुम्हारी हँसी जल-क्रीड़ा मन में लिए

अपने समय के गिरने का
एक छोटा-सा निशान हल्का नीला
बाँह पर बना है
उसे देखता हूँ
अपनी उमंग बचाकर तुम्हारे लिए।