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गोपीनाथ / नंद चतुर्वेदी
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गोपीनाथ अपने गाँव से गठरी लेकर चला था अब शहर में सड़क पार करना है रास्ते दिखते हैं कई
कौन-सा जाता है
गया या प्रयाग या हरिद्वार
शहर में असमंजस है गोपीनाथ
सिर पर रखी गठरी तो और भी गजब है
ठिठक कर लोग खड़े हैं
गठरी देखने के लिए
विदेशी गठरी में लगी
गाँठों पर हतप्रभ हैं
गाँठ में गाँठ में गाँठ
कोई बम तो नहीं है
कहाँ के हो कहाँ जाना है
थाना दूर नहीं है
किस किस का लालच
किस किस का भय
बँध गया है गठरी के साथ
कपड़े बाँध कर चला था गोपीनाथ
गंगा-स्नान के लिए
यह यात्रा निर्मल जल के
तलाश में थी
कहाँ गंगा और कहाँ जमुना
अभी तो सड़क के उस पार
जाना है गोपीनाथ को
गठरी वह अकारण ही ले आया था
सन्देह और तमाशा बनने के लिए।