भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नायक से खलनायक में... / विपिन चौधरी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:20, 1 जून 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विपिन चौधरी }} {{KKCatKavita}} <poem> ज़्यादा समय ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
ज़्यादा समय नहीं लगा उसे
नायक से खलनायक में तब्दील होने में
कुछ अरसा पहले
उसे लादा जा रहा था
तमगों, असंख्य विभूतियों से ।
ठीक उन्हीं दिनों वह रूपान्तरित हो रहा था
भीतर ही भीतर खलनायक में ।
उतार रहा था नायक की अपनी पुरानी खाल
कोई नहीं देख पा रहा था
उसका चमड़ी उतारना ।
एक और खलनायक तैयार हो रहा है ।
इस वक़्त
नायक और खलनायक कें बीच की
विभाजन रेखा कमज़ोर पड़ती जा रही है ।