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हेर श्यामल घन नील गगन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
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हेरिया श्यामल घन नील गगने
हेर स्यामल घन नील गगन
याद आए हैं काजल नयन ।
अधर वे कातर करुणा भरे,
देखते थे जो रह-रह अरे,
विदा के क्षण ।।
झर रहा जल चमके बिजुरी
हवा मतवाली वन में तिरी,
व्यथा प्राणों में आई फूट,
कथा यह किसकी मन में फिरी ।।
मूल बांगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल
('गीत पंचशती' में 'प्रकृति' के अन्तर्गत 6 वीं गीत-संख्या के रूप में संकलित)