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तृष्णा सब रोगों का मूल / शिवदीन राम जोशी

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तृष्णा सब रोगों का मूल |
तृष्णा भय भव दुःख उपजावे, चुभे कलेजे शूल ||
जो सुख चावे तृष्णा त्यागे, अपने आप दर्द दुःख भागे |
शिवदीन चढ़ावे गुरु चरनन की, शिर पर पावन धूल ||
तृष्णा डायन सब जग खाया, ना कोई बचा समझले भाया |
काया माया साथ नहीं दे, पंथ अंत प्रतिकूल ||
लोभ मोह क्रोधादि नाग रे, काम आदि से दूर भाग रे |
जाग सके तो जीव जाग रे, राम नाम मत भूल ||
परमानन्द सदा सुख दायक, संत सयाने सत्य सहायक |
सत संगत सब रोग नसावे, बिछे सुमारग फूल ||