भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तृष्णा सब रोगों का मूल / शिवदीन राम जोशी
Kavita Kosh से
Kailash Pareek (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:45, 11 जून 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवदीन राम जोशी | }} {{KKCatPad}} <poem> तृष्णा ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
तृष्णा सब रोगों का मूल |
तृष्णा भय भव दुःख उपजावे, चुभे कलेजे शूल ||
जो सुख चावे तृष्णा त्यागे, अपने आप दर्द दुःख भागे |
शिवदीन चढ़ावे गुरु चरनन की, शिर पर पावन धूल ||
तृष्णा डायन सब जग खाया, ना कोई बचा समझले भाया |
काया माया साथ नहीं दे, पंथ अंत प्रतिकूल ||
लोभ मोह क्रोधादि नाग रे, काम आदि से दूर भाग रे |
जाग सके तो जीव जाग रे, राम नाम मत भूल ||
परमानन्द सदा सुख दायक, संत सयाने सत्य सहायक |
सत संगत सब रोग नसावे, बिछे सुमारग फूल ||