भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आप और मैं / क्रांति

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:55, 12 जून 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=क्रांति |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> चौसर खे...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चौसर खेलता है राजा
दाँव पर लगती है रानी,
तालियाँ बजाते हैं दरबारी
दीवारें देती हैं गवाही ।

आप और मैं ?
न राजा, न रानी
न दीवारें, न दरबारी
हम तो हैं बस कौड़ियाँ
किसी की मुट्ठी में खनकते हैं
ज़मीन पर गिरते हैं
और थरथराते रहते हैं—
बस यही अपनी आवाज़
बस यही अपना काम ।