भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वे / केशव तिवारी
Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:10, 13 जून 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केशव तिवारी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> वे ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
वे जो लंबी यात्राओं से
थककर चूर हैं उनसे कहो
कि सो जाएँ और सपने देखें
वे जो अभी-अभी
निकलने का मंसूबा ही
बांध रहे हैं
उनसे कहो कि
तुरंत निकल पड़ें
वे जो बंजर भूमि को
उपजाऊ बना रहे हैं
उनसे कहो कि
अपनी खुरदरी हथेलियाँ
छिपाएँ नहीं
इनसे खूबसूरत इस दुनिया में
कुछ नहीं है