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111 से 120 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 3

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पद 115 से 116 तक

 (115)

माधव! मोह-फाँस क्यों टूटै।
बाहिर कोटि उपाय करिय, अभ्यंतर ग्रन्थि न छूटै।1।

घृतपूरन कराह अंतरगत ससि-प्रतिबिंब दिखावै।
ईंधन अनल लगाय कलपसत, औटत नास न पावै।2।

तरू-कोटर महँ बस बिहंग तरू काटे मरै न जैसे।
साधन करिय बिचार-हीन मन सुद्ध होइ नहिं तैसे।3।

अंतर मलिन बिषय मन अति तन पावन करिय पखारे।
मरइ न उरग अनेक जतन बलमीकि बिबिध बिधि मारे।4।

तुलसिदास हरि-गुरू-करूना बिनु बिमल बिबेक न होई।
बिनु बिबेक संसार -घोर-निधि पार न पावै कोई।5।

(116)

माधव! असि तुम्हारि यह माया।
 करि उपाय पचि मरिय, तरिय नहिं , जब लगि करहु न दाया।1।

सुनिय , गुनिय, समुझिय ,समुझाइय, दसा हृदय नहिं आवै।
जेहि अनुभव बिनु मोहजनित भव दारून बिपति सतावै।2।

ब्रह्म-पियूष मधुर सीतल जो पै मन सो रस पावै।
तौ कत मृगजल-रूप बिषय कारन निसि-बासर धावै।3।

 जेहिके भवन बिमल चिंतामनि, से कत काँच बटोरेै।
सपने परबस परै, जागि देखत केहि जाइ निहोरै।4।

ग्यान-भगति साधन अनेक, सब सत्य ,झूँठ कछु नाहीं।
 तुलसिदास हरि -कृपा मिटै भ्रम, यह भरोस मन माहीं।5।