भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ज़ेनिया एक-5 / एयूजेनिओ मोंताले
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:17, 22 जून 2012 का अवतरण
|
यह कभी मेरे दिमाग़ में ही नहीं आया कि मैं तुम्हारा, बहती आँखॊं वाला भरोसेमंद कुत्ता था या कि तुम मेरा ।
औरों के लिए तुम एक कमज़ोर नज़र वाला पिद्दी-सा कीड़ा थीं भद्रलोक की बकवाद से चकित ।
वे बाबू क़िस्म के लोग थे । उन चतुर चालाक लोगों को यह अहसास त्क नहीं हो पाया कि वे तुम्हारे परिहास के पात्र थे, कि तुम अँधेरे में भी उन्हें तोड़ ले सकती थीं ।
तुम्हारी अचूक छठी इंद्रिय, तुम्हारे चमगादड़ी राडार के जरिए बेनक़ाब होते वे लोग !
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल </poem>