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इस कथा में मृत्यु-2 / मनोज कुमार झा

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कौन यहां है और कौन नहीं है, वह क्यों है
और क्यों नहीं- यह बस रहस्य है।
हम में से बहुतों ने इसलिए लिया जन्म कि कोई मर जाए तो
उसकी जगह रहे दूसरा ।
हम में से बहुतों को जीवन मृत सहोदरों की छाया-प्रति है।
हो सकता है मैं भी उन्हीं में से होऊँ ।
कई को तो लोग किसी मृतक का नाम लेकर बुलाते हैं ।
मृतक इतने हैं और इतने क़रीब कि लड़कियाँ साग खोंटने जाती हैं
तो मृत बहनें भी साग डालती जाती हैं उनके खोइछें में ।
कहते हैं फगुनिया का मरा भाई भी काटता है उसके साथ धान
वरना कैसे काट लेता है इतनी तेज़ी से।
वह बच्चा माँ की क़ब्र की मिट्टी से हर शाम पुतली बनाता है
रात को पुतली उसे दूध पिलती है
और अब उसके पिता निश्चिन्त हो गए हैं ।

इधर सुना है कि वो स्त्री जो मर गई थी सौरी में
अब रात को फ़ोटो खिंचवाकर बच्ची मारने वालों
को डराती है, इसको लेकर इलाके में बड़ी दहशत है
और पढ़े-लिखे लोगों से मदद ली जा रही है जो कह
रहे हैं कि यह सब बकवास है और वे भी सहमत हैं
जो अमूमन पढ़े-लिखों की बातों में ढू़ँढ़ते हैं सियार का मल ।

इस इलाके का सबसे बड़ा गुण्डा मात्र मरे हुओं से डरता है ।
एक बार उसके दारू के बोतल में जिन्न घुस गया था
फिर ऐसी चढ़ी कि नहीं उतरी पार्टी-मीटिंग में भी
मन्त्री जी ले गए हवाई जहाज में बिठा ओझाई करवाने ।

इधर कोई खैनी मलता है तो उसमें बिछुड़े हुओं का भी हिस्सा रखता है ।
एक स्त्री देर रात फेंक आती है भुना चना घर के पिछवाड़े
पति गए पंजाब फिर लौटकर नहीं आए
भुना चना फाँकते बहुत अच्छा गाते थे चैतावर ।