भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कठपुतली / सुधा गुप्ता
Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:25, 6 जुलाई 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= सुधा गुप्ता }} Category: चोका <poem> कठपु...' के साथ नया पन्ना बनाया)
कठपुतली
बाज़ार में सजी थी
ख़ुश, प्रस्तुत
कि कोई ख़रीदार
आए, ले जाए
उसके तन–बँधे
डोरे झटके
हँसा, रुला उसको
रिझा, नचाए
मन मर्ज़ी चलाए
ले गया कोई
गुलाबी साफ़ा उसे
कठपुतली
खुश–खुश नाचती
ख़रीदार की
भ्रू–भंगिमा देख के
अपना तन
तोड़ती–मरोड़ती
थिरकती थी
बल खा–खा जाती थी
ऐसा करते
बहुत दिन बीते
जोड़ चटखे़
नसें भी टूट गई
बिखर गई
वो ‘चीथड़ा’ हो गई
वक्त़ की मार :
टूटी–फूटी चीज़ों का
भला क्या काम ?
सो ‘घूरे’ फेंकी गई
अब विश्राम में है।