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एक स्वप्न का आख्यान / पंकज चतुर्वेदी

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इतनी बारिश हुई है
कि गाँव की नदी में काफ़ी पानी है
जैसा आम तौर पर नहीं रहता है
मुझे अजीब-सा और हलका भय-सा लगता है
जैसे यह मेरी दुनिया नहीं है
यह कोई और ही दुनिया है

अगले दृश्य में
मैं अपनी पत्नी के साथ
एक राजनीतिक जलसे में बैठा हूँ
सहसा कुछ लोग वहाँ आकर
हमारे एक साल पहले खो गये बच्चे को
हमें लौटाते हैं
और कहते हैं :
गाँधी जी इस बात से बहुत ख़ुश हैं
कि आपका बच्चा मिल गया है
 पर वे बच्चे की देख-भाल में
 आप लोगों की लापरवाही से
नाराज़ भी हैं
वे आपसे मिलना चाहते हैं
आप उनसे मिले बग़ैर
मत जाइयेगा

 गाँधी जी फ़िलहाल व्यस्त हैं
जलसे से अलग किसी कमरे में
एक राजनीतिक बैठक में

यह शायद 1947 का अक्तूबर या नवम्बर है
जो लोग उस सभा में हैं
वे ख़ुश और आश्वस्त हैं
कि गाँधी अभी हैं
भले पास में ही कहीं
पर उनके बरताव में
अजीब-सी ख़ामोशी
डर और अस्थिरता है
जैसे उन्हें पहले से मालूम है
कि गाँधी कुछ दिनों में
रहेंगे नहीं