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मत माँग / अज्ञेय

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मूढ़, मुझ से बूँदें मत माँग!
मैं वारिधि हूँ, अतल रहस्यों का दानी अभिमानी
पूछ न मेरी इस व्यापकता से चुल्लू-भर पानी!
तुझे माँगना ही है तो ये ओछी प्यासें त्याग-

मेरे खारेपन में भी मम-मय होना बस माँग!
मूढ़ मुझ से बूँदें मत माँग!
मुझ से स्निग्ध ताप मत माँग!
मैं कृतान्त हूँ, मेरी अगणित जिह्वाओं की ज्वाल

जग की झूठी मृदुताओं की भस्मकरी विकराल!
आशा की इस मृदु विडम्बना से ओ पागल, जाग!
मेरा वरद हस्त देता है-आग, आग, बस आग!
मुझ से स्निग्ध ताप मत माँग!

लाहौर, 29 मार्च, 1935