भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चरण पर धर चरण / अज्ञेय
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:40, 19 जुलाई 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=इत्यलम् / अज्ञेय }} {{...' के साथ नया पन्ना बनाया)
चरण पर धर चरण
चरण पर धर सिहरते-से चरण,
आज भी मैं इस सुनहले मार्ग पर-
पकड़ लेने को पदों से मृदुल तेरे पद-युगल के अरुण-तल की
छाप वह मृदुतर जिसे क्षण-भर पूर्व ही निज
लोचनों की उछटती-सी बेकली से मैं चुका हूँ चूम बारम्बार-
कर रहा हूँ, प्रिये, तेरा मैं अनुकरण
मुग्ध, तन्मय-
चरण पर धर सिहरते-से चरण।
पाश्र्व मेरा-
किन्तु इस से क्या कि मेरे साथ चलता कौन है,
जब कि वह है साथ मेरी यन्त्र-चालित देह के,
और मैं-मेरा परम तम तत्त्व वलयित साथ तेरे प्राण के :
जब कि आत्मा यह अनाहत और अक्षत,
चरण-तल की छाप के उस कनक-शतदल कमल से
बिछुड़ी अकेली दोल पंखुड़ी में चमकती
लोल जल की बूँद-सा पर-ज्योति-गुम्फित,
तद्गत और अतिश: मौन है!
बरेली-काठगोदाम (रेल में), अक्टूबर, 1941