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द्रौपदी की इज्जत / प्रेम कुमार "सागर"
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प्यासी अवाम है औ' सड़कों पर पानी है
मेरे शहर की यारों यहीं कहानी है |
बच्चों की भूख, माँ की सुखी हुई छाती
कुत्तों की थाल में बिस्कुट ब्रितानी है |
खुला है आसमाँ लेकिन परिंदा उड़ नहीं सकता
यहाँ पर को कतरने की रीति सदियों पुरानी है|
खुद को जल जाने से, कहो, कैसे बचाओगे
कहीं कातिल निगाहें हैं कहीं तपती जवानी है |
बनो तुम कृष्ण लेकर हाथ में चक्र-ऐ-सुदर्शन को
द्रौपदी की इज्जत कौरवों से फिर बचानी है |
तू मत झगड़ मझधार में मौजों से इस तरह
टूटी-फूटी सी किश्ती है औ' लहरें तूफानी है |
'सागर' किसी की तू जरुरत बन नहीं सकता मीठी है प्यास लोगों की औ' खारा तू पानी है |