भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सलोने सपने / प्रेम कुमार "सागर"
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:57, 20 जुलाई 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेम कुमार "सागर" |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
जहाँ हर रात कुछ सपने सलोने सोते है
झील ये क्योँ तेरी आँखों की तरह होते है.
घनेरी शाम है तेरा यूँ पलकों का गिराना
इन कोटरों में जुगनू भी शबनम संजोते है.
बातें हज़ार करती है झुक-झुक कर निगाहें
और लब दो, हरदम सैकड़ो तूफ़ान ढोते है.
प्यार की, आँखों से बारिश, तुम ज़रा कर दो
अरमां के, कुछ पेड़ दिल में, हम भी बोते है.
देखा 'सागर' को तुमने मुस्काते हुए हर दिन
तुम्हे मालूम है हँसते पलंग में पेड़ रोते है