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तुम नहीं थे / प्रेम कुमार "सागर"

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बस तेरे कुछ साज थे पर तुम नहीं थे
कातिल वही अंदाज थे पर तुम नहीं थे

दिल जला उस सर्द मौसम की फिजा में
फिर से मधुर आगाज थे पर तुम नहीं थे

हर बार जागा नींद में, हर बार सिसका
हँसते हुए हर राज थे पर तुम नहीं थे

कैसे मनाता, क्या करता बस घुटता रहा
लम्हें वही नाराज़ थे पर तुम नहीं थे

महफ़िल वही, मै भी, मगर कुछ भी नहीं
सारे सुनहरे ताज थे पर तुम नहीं थे

दिखे बेपर्द तो दिल ने तड़पकर कह दिया
घूँघट में सारे लाज थे पर तुम नहीं थे

उठा एक शोर औ' अरमान सारे दब गए
'सागर' के वे अल्फाज़ थे पर तुम नहीं थे |