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मेरे वक़्त का एक अहम सवाल / गीत चतुर्वेदी

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मैं बुदबुदाता हूँ
और मेरी आवाज़ नहीं सुनी जाती
मैं फिर कहता हूँ कुछ शब्द
और इंतज़ार करता हूँ
कुछ आवाज़ें फिर निकलती हैं मेरे कंठ से
वे मेरी ओर देखते हैं और
वापस काम में लग जाते हैं
मैं बोलते समय अपने हाथ भी हिलाता हूँ
खट-खट जमीन पर ठोंकता हूँ अपने जूते
चुटकी बजाता हूँ, ताली पीटता हूँ, एक सीटी भी मार देता हूँ
तीन शब्द में होना था काम
तीन लाख शब्द ज़ाया हो गए

क्या मुझे ज़ोर से चिल्लाना चाहिए?