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कैसे कहूँ कि तेरे पास आते समय / अज्ञेय

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कैसे कहूँ कि तेरे पास आते समय मेरी काया अमलिन, सम्पूर्ण और पवित्र है या कि मेरी आत्मा अनाहत, अविच्छिन्न है?
क्योंकि तुझ तक पहुँचने में, तेरी खोज में बिताये हुए अपने भूखे जीवन में क्या मुझे भयंकर अन्धकार, कीच-कर्दम और कँटीली झाडिय़ों में से उलझते हुए नहीं आना पड़ा?
अमालिन्य, सम्पूर्णता और पवित्रता का आदर मैं ने किया है- उन की अप्राप्ति में। उन्हें प्राप्त करना और सुरक्षित रखना मुझे तुझ से ही सीखना है।
किन्तु तेरे समीप आते हुए, मेरे पास एक वस्तु अवश्य है- मेरी काया अब भी अनुभूति-सामथ्र्य रखती है और मेरी आत्मा अब भी स्वच्छन्द और अबद्ध है!

मुलतान जेल, 13 दिसम्बर, 1933