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जान लिया तब प्रेम रहा क्या? नीरस प्राणहीन आलिंगन
अर्थहीन ममता की बातें अनमिट एक जुगुप्सा का क्षण।
किन्तु प्रेम के आवाहन की जब तक ओठों में सत्ता है
मिलन हमारा नरक-द्वार पर होवे तो भी चिन्ता क्या है?