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तुम्हारी पुस्तक पढ़ी है / शम्भु बादल

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तुम्हारी पुस्तक पढ़ी है
उसके तो शब्द-शब्द
झूठे अर्थ के दबाव से
फूट-फूटकर रोते हुए
बिखर जाते हैं

फिर नये लोभ से
नए-नए शब्द
बुलबुले की तरह उगते
युवा होते
बुढ़ाते
मरते चले जाते हैं