भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
विस्मृति-विषाक्त / अज्ञेय
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:57, 3 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=चिन्ता / अज्ञेय }} {{KKC...' के साथ नया पन्ना बनाया)
विस्मृति-विषाक्त हाला भी पिला दो!
प्राण वीणा मृत्यु-राग में हिला दो!
तम ने चारों ओर घेरा, उचट गया जब प्यार तेरा।
टूटा जीवन-द्वीप मेरा-
कुचल दो इस को धूल में मिला दो!
मन के सारे तार टूटे, पीड़ा धारासार फूटे।
पर कैसे यह प्यार छूटे?
इस के छिन्न प्राण को भी जला दो!
प्रणयी का सान्निध्य खोया, युगों-युगों का स्नेह सोया,
प्राणों का कंकाल रोया-
मर्मान्तक यह पीड़ा भी सुला दो!
विस्मृति-विषाक्त हाला भी पिला दो!
प्राण-वीणा मृत्यु राग में हिला दो!
1939