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एक आटोग्रॉफ़ / अज्ञेय
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अल्ला रे अल्ला
होता न मनुष्य मैं, होता करमकल्ला।
रूखे कर्म-जीवन से उलझा न पल्ला।
चाहता न नाम कुछ, माँगता न दाम कुछ,
करता न काम कुछ, बैठता निठल्ला-
अल्ला रे अल्ला!
इलाहाबाद, 30 जुलाई, 1946