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पुनराविष्कार / अज्ञेय
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कुछ नहीं, यहाँ भी अन्धकार ही है,
काम-रूपिणी वासना का विकार ही है।
यह गुँथीला व्योमग्रासी धुआँ जैसा
आततायी दृप्त-दुर्दम प्यार ही है।
इलाहाबाद, 19 जनवरी, 1949