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तुम फिर आ गए, क्वाँर? / अज्ञेय
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भाले की अनी-सी बनी बगुलों की डार,
फुटकियाँ छिट-फुट गोल बाँध डोलती
सिहरन उठती है एक देह में
कोई तो पधारा नहीं, मेरे सूने गेह में-
तुम फिर आ गये, क्वाँर?
दिल्ली, अक्टूबर, 1950