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मालाबार का एक दृश्य / अज्ञेय

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तालों के जाल घने, कहीं लदे-छदे
कहीं ठूँठ तने; केलों के कुंज बने, सीसल की मेंड़ बँधे।

कबरी में खोंस फूल गुड़हल का सुलगे अंगार-सा
साड़ी लाल धारे
-ज्वार-माल डाले मूर्ति आबनूस काठ की-
सेंहुड़ के सामने कँटीली खड़ी बाला मालाबार की।

जून, 1951