भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अतिथि सब गए / अज्ञेय
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:42, 8 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=इन्द्र-धनु रौंदे ह...' के साथ नया पन्ना बनाया)
अतिथि सब गये : सन्नाटा
ज्वार आया था, गया : अब भाटा।
कुछ काम, दोस्त? हाँ, बैठो, देखो,
किस कुत्ते ने कौन पत्तल चाटा!
नयी दिल्ली, 27 अक्टूबर, 1954