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सपने का सच / अज्ञेय
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सपने के प्यार को
तुम्हें दिखाऊँ
-यों सच को
सुन्दर होने दूँ।
सपने के सुन्दर को
प्यार करूँ, सब को दिखलाऊँ-
सच होने दूँ।
पर सपने के सच को
किसे दिखाऊँ
जिस से वह सुन्दर हो
और उसे कर सकूँ प्यार?
नयी दिल्ली (स्वप्न में), 22 जनवरी, 1957