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सागर मुद्रा - 8 / अज्ञेय
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यों मत छोड़ दो मुझे, सागर,
कहीं मुझे तोड़ दो, सागर,
कहीं मुझे तोड़ दो!
मेरी दीठ को और मेरे हिये को,
मेरी वासना को और मेरे मन को,
मेरे कर्म को और मेरे मर्म को,
मेरे चाहे को और मेरे जिये को
मुझ को और मुझ को और मुझ को
कहीं मुझ से जोड़ दो!
यों मत छोड़ दो मुझे, सागर,
यों मत छोड़ दो।
बर्कले (कैलिफ़ोर्निया), 10 मई, 1969