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संभावनाएँ / अज्ञेय

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अब आप ही सोचिए
कितनी सम्भावनाएँ हैं
-कि मैं आप पर हँसूँ
और आप मुझे पागल करार दे दें;
-या कि आप मुझ पर हँसें
और आप ही मुझे पागल करार दे दें;
-या आप को कोई बताये कि मुझे पागल करार दिया गया
और आप केवल हँस दें...
-याकि
हँसी की बात जाने दीजिए
मैं गाली दूँ और आप-
लेकिन बात दोहराने से लाभ?
आप समझ तो गये न कि मैं कहना क्या चाहता हूँ?
क्यों कि पागल
न तो आप हैं
न मैं;
बात केवल करार दिये जाने की है-
या, हाँ, कभी गिरफ़्तार किये जाने की है।
तो क्या किया जाए?
हाँ, हँसा तो जाए-
हँसना कब-कब नसीब होता है?
पर कौन पहले हँसे?
किबला, आप!
किबला, आप!

मार्च, 1976