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तन बेचते लोग / लालित्य ललित

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अब बेख़ौफ़ घूमते हैं
शहर में पनपे नए किस्म के लोग
महिलाओं की ज़रूरतों को
पूरा करते ये ‘जिगोलो’
आसानी से उपलब्ध हैं
इन्हें कोई शर्म नहीं
आख़िर उपभोक्तावादी युग में
नये बाजारवाद का
उन्नयन हो चुका है
संबंधों की नाव को
चलाते अक्सर पति-पत्नी
एक-दूसरे को देते हैं धोखा
चाहंे बात अपनी हसरतों की हो
या पूर्व में किए प्रेम प्रसंग की हो
संबंधों को ढोते लोग
ख़ुद एक विकार बन गए हैं
जिन्हें अपने कृत्य में
कोई शर्म नहीं महसूस होती
ये वो लोग हैं
जिनकी चमड़ी ज़रा मोटी है
गैंडे से भी ज़्यादा ओ कहां चले ?
बात तुम्हारी हो रही है