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अबूझ पहेली / लालित्य ललित

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अचानक
तुम को देखा
देखता रह गया
न कुछ न सूझा
अपलक !
शब्दों में खोजता रहा
अबूझ
रहस्य के पीछे की
घटना के तथ्यों को
वास्तव में
तुम ही थी
तरह-तरह के रूप बदल
कई-कई
जन्मों में
लंबी अवधि
बीत जाने पर
मिल जाती हो
क्षण भर को
शब्द
हो जाते हैं बैचेन
पन्नों से बाहर
आ कर
दर्ज कराना चाहते हों जैसे
अपना आक्रोश
अपना दर्द
अपना स्नेह
- ठीक कहते हो तुम
मैं वही हूं
जिस की खोज में हो तुम
सदियों से
दीवार पर
टंगी तस्वीर
में से कोई बोलता हो
फिर
पुस्तकालय में रखी
पुस्तक से
शब्दों की मौलिक अभिव्यक्ति
की
प्रथम प्रस्तुति हो
या फिर
निवेदन पर निवेदन