Last modified on 23 अगस्त 2012, at 14:26

स्लमडॉग और मिलिनियेर / लालित्य ललित

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:26, 23 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लालित्य ललित |संग्रह=चूल्हा उदास ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


छोटे-छोटे
चक्करों में लगा है
छोटा आदमी
और बड़ा आदमी
बड़े-बड़े चक्करों में रमा है
इसी तरह
उनकी महिलाएं भी
अपने स्तर पर
कार्यरत्त हैं
और बच्चे, माशाल्लाह
उनकी जीवन शैली भी
विचित्र है
झोंपड़-पट्टी की आशिकी
और
डुप्लेक्स इमारतों की
कहानी
कोई जुदां नहीं है
वातावरण कपड़ों
विचारों का ही
मात्र फ़र्क़ है
दोनों हैं मगर ओछे
कोई अंतर नहीं
एक लावारिस की मौत
मरता है
सुर्ख़ियों में भी नहीं आता
केवल चंद पंक्तियां
अज्ञात युवती को
अज्ञात ट्रक
सवार ने कुचला
मौक़े से ट्रक सवार फ़रार
कोई चश्मदीद गवाह नहीं
और दूसरा मुलाहिजा फरमायें
अमीर बाप की
युवा बेटी का दिन दहाड़े -
अपहरण
इलाके की नाका बंदी
क़र्यू-सा माहौल
ब्रेकिंक न्यूज़ का जलवा
पगलाए सेठ जी
रूपयों की परवाह नहीं
करते
मंत्री से ले कर
संतरी तक
दरवाजे़ पर खड़े हैं
मेहनत रंग लाई
बिटिया किसी ‘दोस्त’ के साथ
चली गई थी
समाचार का मुलाहिजा करें
संभ्रांत धनी इलाके़ के
रामफल की बेटी
साईं मंदिर से बरामद
पूजा करने गई थी
किसी ने रास्ता पूछा
इत्यादि-इत्यादि
ऐसा ही होता है
नोटों की खनक
क्या कुछ नहीं करा देती
आलसी पुलिस को
चुस्त
और चुस्त अधिकारी को
सुस्त
नोटों की खनक ही करा सकती है !