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भाग्यशाली बाबा, अभागा यजमान ! / लालित्य ललित

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कुकुरमुत्तों की तरह
पनप गए
नये ज़माने के बाबा
पंडे, पाखंडी
पढ़े लिखे लोग
शहरी लोग
शिक्षित ओर बहुधंधी लोग
आ जाते सभी चक्कर में
व्यापार, ब्याह, लड़का, तरक्की
साढ़े सती का उपचार
राहु-केतु का असर
मकान का पश्चिम
दिशा में होना
सूनी कोख, लड़ाई-झगड़े का -
अंत
व्यापार का न चलना
वगै़रह-इत्यादि-आदि का
समाधान
ये बाबा क़िसिम के
अनपढ़ मगर
ज़माने की भाषा में
चतुर सयाने
सयानों को ही
चूना लगा रहे हैं
ऐसा कोई सगा नहीं
जिनको इन्होंने ठगा नहीं
जान जाइए
अक़लमंदी इसी में है
इनसे कुछ नहीं होना
जो मुकद्दर में है
वह मिल कर रहेगा
उसको कोई छीन नहीं सकता
हां !
यह बात ज़रूर है
ये ढोंगी आपकी
‘अंटी’ से
थोड़ी रक़म ज़रूर ले जायेंगे
बच्चा !
ध्यान किधर है ?
क्या तू तकलीफ़ में है
मुसीबत में है
ध्यान दें
221 रुपए में सब चिंताएं
दूर कर दूंगा
तू तरक्की करेगा
तेरा कोई बाल-बांका न कर सकेगा
हरि ओऽम
अलख निरंजन का मंत्र घोष
बाब जी ने चिलम सुलगा ली
हमारे यहां मूर्खों की कमी नहीं
दुकानंे चल रही हैं
ज़िम्मेवार कौन है ?
सुन कर जान कर भी
आदमी मौन है
शायद उसे बड़ी घटना का -
इंतज़ार है !