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नई तरक़ी / लालित्य ललित
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क्या ज़रूरी है
ख़ुद को परोसना
जी नहीं !
मैंने कई बार इंटरव्यू दिया
नियुक्ति पत्र नहीं आया
कई चक्कर लगाए
कोई बुलावा नहीं आया
नौकरी की आस में
जब आंखों की पढ़ ली
भाषा
दिखी नये जीवन की आशा
ऊंचे तबक़े के हाथ
दबाई गई मैं
हम बिस्तर, हम प्याला हुई
आज
उसी द़तर में
संयुक्त निदेशक के पद पर
कार्यरत हूं
जहां से कभी
कॉल लेटर नहीं आता था ।