कच्ची रसोई की रामरज से रंगी
पीली और धुएँ से
कलुषती दीवार
लपट के थिरकने के साथ
जिस पर काँपती है जो
माँ के चेहरे की छाया है।
उस ने वह लील ली है
मुस्कुराहट
धरते हुए मेरी कठौती में
गर्म फुल्का
जो हौले-से उभर आती है
माँ के थके-तपे चेहरे पर।
(1985)