भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हर बरसात में / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:45, 28 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंदकिशोर आचार्य |संग्रह=बारिश मे...' के साथ नया पन्ना बनाया)
कितनी ही
मज़बूत हो दीवाल
कोई जम ही जाती है
और निखरती रहती
हर बरसात में धुल कर।
(1993)