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सघन मौन के / संगीता गुप्ता

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सघन मौन के
सन्नाटे में
बैंजनी - नीले प्रकाश
वृत्तों में
डूबते - उतराते
खोज रही हूँ
अपने होने का अर्थ
जिज्ञासु मन
लौटता है बार - बार
अपने ही अन्दर
पैठता है भीतर
और भीतर

पाता है
मात्र स्वयं को
पनपता है साक्षी भाव
स्वयं के प्रति
एक ही पथ
एक ही लक्ष्य
स्वयं का स्वयं तक
पहुँचना, पाना और
मुक्त हो जाना