स्वप्न में सीता मिथिला आयी
पुष्प वाटिका में फिर प्रभु-दर्शन करते न अघायी
अरुण अधर कजरारे लोचन
देख किशोर रूप उमगा मन
प्रीति पुरातन जगी, पिता प्रण सोच-सोच पछ्तायी
उभरी धनुष-भंग की झाँकी
श्याम, सलोनी मुख-छवि बाँकी
कम्पित जयमाला ग्रीवा की ओर न गयी उठाई
पा सिन्दूर-दान, सुधि भूली
झुक कर ज्यों ही पद रज छू ली
प्रात-किरण नयनों में झूली खगरव पड़ा सुनायी
स्वप्न में सीता मिथिला आयी
पुष्प वाटिका में फिर प्रभु-दर्शन करते न अघायी