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ध्यान में बुला बुला कर हारा / गुलाब खंडेलवाल

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ध्यान में बुला बुला कर हारा
पर शब्दों से तो प्रभु मैंने मन में तुम्हें उतारा

साध यही थी यही साधना
सधे स्वरों से तुम्हें बाँधना
थी न शक्ति करूँ आराधना
पाने प्रेम तुम्हारा

जो अवर्ण्य था वाणी के हित
ध्वनि लय से कर उसको इंगित
कुछ तो भी पा सका भ्रमित
चित अपने लिये सहारा

भाव जगा देता दर्शन का
हर अक्षर दर्पण बन मन का
मिला मुझे तो फल जीवन का
शब्दों के ही द्वारा

ध्यान में बुला बुला कर हारा
पर शब्दों से तो प्रभु मैंने मन में तुम्हें उतारा