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घहरि घहरि घन सघन चहुँधा घेरि / द्विज
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घहरि घहरि घन सघन चहुँधा घेरि ,
छहरि छहरि विष बूँद बरसावै ना.
द्विजदेव की सौं अब चूक मत दाँव,
एरे पातकी पपीहा!तू पिया की धुनि गावै ना.
फेरि एसो औसर न ऐहै तेरे हाथ,एरे,
मटकि मटकि मोर सोर तू मचावै ना.
हौं तौ बिन प्रान,प्रान चाहत तजोई अब,
कत नभ चन्द तू अकास चढि धावै ना.