भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सूर्यनमस्कार / कविता वाचक्नवी

Kavita Kosh से
Kvachaknavee (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:51, 3 अक्टूबर 2012 का अवतरण (वर्तनी)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सूर्य-नमस्कार


झिर्रियों की धूप

देती है आभास

बाहर

उग गया है, सूर्य ।

कुछ पल

लुके-छिपे, बंद झरोखों-दरारों से

झाँक लेगा

किसी एक कोने, नुक्कड़, किनारे ।


अंधेरी कोठरियों के वासी

रहेंगे ठिठुरते ही

काँपते ही

तड़फड़ाते ही ।


हड्डियों तक

बर्फ़ जमे लोग

कैसे करें

सूर्य-नमस्कार ?