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तुम आओगे..!! / शमशाद इलाही अंसारी

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तुम अगर नहीं आये
तुम्हारे बगैर
ये शाम गर, यूँ ही गुजर गयी
तब,
ये लम्हें, ये घडियां
ये मेरा वजूद
भला किस काम का..?
कुम्हार के चाक पर
बेपनाह रफ़्तार से घूम रही
मिट्टी जैसा मैं..
बस एक तुम्हारे
संपर्क का मोहताज.
तुम जरुर आयोगे
और मुझे कोई शक्ल
दे दोगे
मेरी पहचान
मेरा चेहरा...



जनवरी १६,२०११